सलाफ़-ए-सालिहीन की नज़र में निकाह की अहमियत
Salaf-e-Saliheen ki Nazar mein Nikaah ki Ahmiyat
निकाह की फज़ीलत और अहमियत
(भाग- 2)
पिछले भाग में हमने बताया था कि हज़रात सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ताबीईन और सलाफ़-ए-सालीहीन ने भी निकाह का न सिर्फ़ मामुल (विवाह की प्रथा) को बनाए रखा;
बल्कि वह शादी के बारे में लोगों को बराबर आकर्षित करते रहे ।
6. पिछली उम्मतों में (पिछले ज़माने में) एक आबिद (इबादत करने वाला) ज़्यादा इबादत की की वजह से उस ज़माने के लोगों में सबसे आगे और सबसे से श्रेष्ठ बन गए थे।
जब उस वक़्त के पैग़म्बर के सामने इसका ज़िक्र किया गया तो उन्होंने कहाः
वह एक अच्छा आदमी है, बशर्ते कि वह एक सुन्नत को न छोड़े।
जब नबी अलैहिस सलाम की यह बात उसको पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ और वह पैगंबर अलैहिस सलाम के पास आकर इसके बारे में दरयाफ़्त किया (इस बारे में पूछा)।
तो उन्होंने जवाब दिया कि तुमने निकाह की सुन्नत छोड़ रखा है।
तो आबिद ने जवाब दिया कि मैं इसे हराम नहीं समझता, बल्कि सच तो यह है कि मैं गरीब हूं और लोगों पर बोझ हूं (इसीलिए मैं शादी नहीं करता)।
तो उस नबी ने फ़रमाया कि मैं अपनी बेटी तुम्हारे निकाह में देता हूं,
और उसका विवाह अपनी बेटी से कर दिया।
7. बिश्र-इब्न-हारिस कहते हैं:
अहमद इब्न हंबल मुझ पर तीन वजहों से बढ़े हुए हैं:
- वह खुद अपने लिए और साथ में अपने परिवार के लिए कमाते (Income करते) हैं। और मैं सिर्फ़ अपने लिए कमाता हूं।
- वह निकाह करने में सबसे आगे हैं, और इस बारे में उनसे पीछे हूं।
- तीसरा यह है कि उन्हें इमाम का दर्जा दिया गया है।
8. यह नक़ल किया गया है कि:
हज़रत इमाम अहमद इब्न हंबल रहमतुल्लाहि अलैहि, उन्होंने अपने बेटे अब्दुल्लह की मां (अपनी पत्नी) की मृत्यु (इन्तेकाल) के अगले ही दिन दूसरा निकाह किया और फ़रमाया:-
“मुझे अपनी बीवी (पत्नी) के बगैर रात बिताना (गुज़ारना) पसंद नहीं है।”
9. बिश्र-इब्न-हारिस का जब इन्तेकाल हुआ, तो कुछ लोगों ने उन्हें सपने में देखा और उनसे उनकी हालात (परिस्थितियों) के बारे में पूछा।
उन्होंने जवाब (उत्तर) दिया:
“अल्लाह जन्नत में मेरे इतने दर्जे (स्तर) बुलंद किए हैं कि मैं पैगंबर और रसूलों के मक़ामों (स्थानों) को देख सकता हूं।
हालाँकि, मैं परिवारों के मामले में भाग्यशाली दर्जे (रैंक) तक नहीं पहुंच सका।
10. उन्हीं बिश्र-इब्न-हारिस से ख़्वाब (सपने) में पूछा गया कि हज़रत अबू नस्र तमार के साथ क्या मामला हुआ?
बिश्र ने कहा कि उन्हें मुझसे सत्तर दर्जा (रैंक) ऊपर रखा गया है।
लोगों ने कहा कि दुनिया में हम उन्हें आपसे ऊंचा नहीं समझते थे,
तो बिश्र ने जवाब दिया कि उन्हें यह दर्जा अपने बच्चों और परिवार की तकलीफों पर सब्र (धैर्य) रखने के की वजह से मिला है।
Salaf-e-Saliheen ki Nazar mein Nikaah ki Ahmiyat
11. कुछ लोग का कहना है कि गैर शादी-शुदा शख़्स (अविवाहित व्यक्ति) शादी-शुदा व्यक्ति से ऐसे ही अफ़ज़ल (बेहतर) है, जैसे जिहाद करने वाला व्यक्ति बैठे रहने वाला व्यक्ति से अफ़ज़ल (बेहतर) है।
और शादीशुदा व्यक्ति की एक रकअत गैर शादी-शुदा (अविवाहित) व्यक्ति की सत्तर रकअत नमाज़ से अफ़ज़ल (बेहतर) है।
असल बात यह है कि हमारा मज़हब (धर्म) हमें रहबानियत (मठवाद) के बारे में नहीं सिखाता है कि:-
लोग अलग-थलग रहकर ब्रह्मचर्य की ज़िंदगी गुज़ारे, या पहाड़ों और गुफाओं में रहने लगे;
बल्कि इस्लाम की नज़र (दृष्टि) में फज़ीलत का मुसतहिक (उत्कृष्टता का हकदार) वह है जो सुन्नतों पर अमल करने वाला हो, जो लोगों के साथ मिल-जुलकर रहे।
और जो अपने परिवार और रिश्तेदारों के हुक़ूक़ (अधिकारों) को पूरा करता हो।
और यह स्पष्ट है कि एक आदमी को इन अधिकारों के भुगतान में जिन चरणों से गुजरना पड़ता है, उन्हें शालीनता और अच्छी तरह से सहन करना एक आदमी की दर्जा (रैंक) में उन्नति का कारण बन जाता है,
यह दर्जा दूसरे लोगों के लिए हासिल करना मुश्किल होता है।
अस्सलामु अलैकुम।
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मेरा नाम मोहम्मद नजामुल हक है, मैं एक इस्लामी मदरसे का शिक्षक हूं।
मैं मदरसा शिक्षा के साथ-साथ ऑनलाइन इस्लामिक लेख भी लिखता हूं, ताकि लोगों को सही ज्ञान मिल सके।
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