सलाफ़-ए-सालिहीन की नज़र में निकाह की अहमियत
Salaf-e-Saliheen ki Nazar mein Nikaah ki Ahmiyat
-:निकाह की फज़ीलत और अहमियत:-
(भाग- 1)
हज़रात सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ताबीईन और सलाफ़-ए-सालीहीन ने भी निकाह का न सिर्फ़ मामुल (विवाह की प्रथा) को बनाए रखा; बल्कि वह शादी के बारे में बराबर आकर्षित करते रहे ।
इह़याउल उलूम में हज़रत इमाम ग़ज़ाली (रहमतुल्लाहि अलैहि) ने नक़ल फ़रमाया कि:
1. हज़रत अब्दुल्ला इब्न उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) फ़रमाया करते थे:
مَا يَمْنَعُكَ مِنَ النِّكَاحَ إِلَّا عِجْرٌ أَوْ فُجُورٌ۔
सिर्फ़ दो ही चीजें हैं जो निकाह को रोकती हैं:
- एक है नम्रता,
- दूसरी है दुराचार, दुष्कर्म, बदचलनी।
(इहयाउल-उलूम अरबी: 02/23, Maktabah Shamilah)
(मुसन्नफ इब्न अबी शायबा, हदीस नं: 16158)
(मुसन्नफ इब्न अब्दुर-रज्जाक़, हदीस नं: 10384)
2. हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हु) की कहावत है कि:
لا يَتِمُّ نُسُكُ النَّاسِكِ حَتَّى يَتَزَوَّجَ۔
किसी हाजी का हज्ज तब तक पूरा नहीं होगा जब तक उसकी शादी न हो जाए।
(इहयाउल-उलूम अरबी: 02/23, Maktabah Shamilah)
(मुसन्नफ इब्न अबी शायबा, हदीस नं: 16159)
इसकी वजह यह है कि एक गैर शादी-शुदा (अविवाहित) व्यक्ति आम तौर पर एक शादी-शुदा (विवाहित) व्यक्ति की तुलना में आज़ादी (स्वतंत्र) दिल के साथ (दिल लगा कर) अरकान (फ़र्ज़) अदा नहीं कर पाता।
3. सय्यिदुना हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद (रज़ियल्लाहु अन्हु) फ़रमाते थे कि अगर मेरी उम्र दस रात (दस दिन) बचे हों, तो भी मैं निकाह (विवाह) की ख्वाहिश (इच्छा) रखूंगा,
ताकि मुझे बिना पत्नी की हालत में अल्लाह के सामने पेश न होना पड़े।
(मजमा-उज़-ज़वाइद: 04/251)
(इहयाउल-उलूम अरबी: 02/23, Maktabah Shamilah)
4. सैय्यदना हज़रत मुआज़ इब्न जबल (रज़ियल्लाहु अन्हु) की दो बीवियां (पत्नियाँ) प्लेग से इन्तेकाल फ़रमा गई (मर गईं)।
वह (हज़रत मुआज़ इब्न जबल, र.अ) खुद भी प्लेग से पीड़ित थे, लेकिन फिर भी उन्होंने लोगों से कहा:
मेरी शादी (निकाह) करा दो क्योंकि मुझे यह पसंद नहीं कि मैं बिना पत्नी के अल्लाह से मिलूं।
(इहयाउल-उलूम अरबी: 02/23, Maktabah Shamilah)
5. अमीरुल मोमिनीन सैयदना हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़ियाल्लाहु अन्हु) बहुत शादियाँ करते थे और कहते थे:
مَا أَتَزَوَّجُ إِلَّا لِأَجَلِ الْوَلَدِ۔
“मैं केवल (सिर्फ़) बच्चों की तलब (चाहत) के लिए निकाह करता हूँ।
(इहयाउल-उलूम अरबी: 02/23, Maktabah Shamilah)
-:और पढ़ें:-
अस्सलामु अलैकुम।
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