पांचों वक्त की नमाज़ का समय
Panch waqt ki Namaz ka time
प्यारे दोस्तों, आज हम इस आर्टिकल में नमाज़ के वक्तों (समयों) के बारे में जानकारी देंगे।
अगर आप के पास टाईम देखने का कोई मशीन न हो तो आप किसी घड़ी या किसी मोबाईल या समय देखने का कोई भी यंत्र (मशीन) के बिना ही नमाज़ का वक्त (समय ) देखकर टाईम पर नमाज़ अदा कर सकते हैं।
फज्र (भोर) की नमाज़ का वक्त (समय)
फज्र की नमाज़ का वक्त (समय ) सुबह (सुबहे सादिक) से सुरज के तुलू (सूर्योदय) तक रहता है।
भोर यानी सबेरे के वक्त आसमान के पूर्व दिशा में एक सफेदी (रोशनी) ज़ाहिर होकर चारों तरफ फैल जाती है उस सफेदी को “सुबह सादिक” कहते हैं।
सुबह सादिक और सुबह काज़िब में फर्क
रात्रि (रात) के अंतिम (आखिरी) पहर में भोर (सबेरे) के समय पूर्व दिशा से आसमान (आकाश) पर लम्बाई में कुछ सफेदी दिखाई देती है,
जो कुछ ही देर में ख़त्म हो जाता है, और फिर अंधेरा हो जाता है इसे “सुबह काज़िब” (झूठी सुबह) कहते हैं।
फिर कुछ देर बाद आसमान (आकाश) के किनारे पर चौड़ाई में कुछ सफेदी दिखाई देती है जो बढ़ती रहती है, और थोड़ी देर बाद यह बिल्कुल रोशन हो जाता है,
इसे “सुबह सादिक” (सच्ची सुबह) कहा जाता है, जिससे फज्र का समय शुरू हो जाता है।
इस समय से पहले पहले तहज्जुद पढ़ने की इजाज़त है।
सुब्हे सादिक के समय से इशराक तक फज्र की दो रकअतों के अलावा किसी भी नफ़्ल नमाज़ को अदा करना शरियत की तरफ़ से इजाज़त नहीं है।
तो अगर कोई सुबह सादिक के बाद तहज्जुद पड़ेगा तो तहज्जुद अदा नहीं होगा।
फज्र की नमाज़ का मुस्तहब वक्त
फज्र की नमाज़ देर से रोशनी में पढ़ना मुस्तहब है,
लेकिन उसे इतनी देरी से नहीं पढ़नी चाहिए कि,
अगर किसी वजह से नमाज़ फासिद (बातिल, अमान्य) हो जाए तो वक्त ख़त्म (सूर्योदय) होने से पहले वज़ू करने के बाद सुन्नत के मुताबिक (अनुसार) दोबारा नमाज़ अदा न कर सके।
इतनी देर से फज्र की नमाज़ नहीं पढ़ सकते।
ज़ुहर की नमाज़ का वक्त
ज़ुहर की नमाज़ का समय सूरज ढलने से शुरू होता है, और उस वक्त तक रहता है जब हर चीज़ का छाया उसके दो गुना हो जाए।
और असर की नमाज़ तक समय बाकी रहता है।
ज़ुहर की नमाज़ का मुस्तहब वक्त
गर्मी के मौसम में ज़ुहर की नमाज़ देर से पढ़ना मुस्तहब है, और ठंडी के ज़माने में शुरू वक्त (शुरूआती समय) में पढ़ना मुस्तहब है।
जुम्मे की नमाज़ का वक्त
जुम्मे का असल वक्त भी ज़ुहर के वक्त की तरह है, यानी जब से ज़ुहर का वक्त शुरू होता है, उसी वक्त से जुम्मे का समय शुरू होता है।
और जब ज़ुहर का वक्त ख़त्म होता है उसी समय जुम्मे की नमाज़ का वक्त ख़त्म होता।
असर की नमाज़ का वक्त
ज़ुहर का वक्त ख़त्म होते ही असर की नमाज़ का वक्त शुरू होता है और सूरज के डुबने तक असर का समय बाकी रहता है।
असर की नमाज़ का मुस्तहब वक्त
असर का मुस्तहब वक्त सूरज में तग़य्युर (तब्दीली, बदलाव, परिवर्तन) आने से पहले तक रहता है, चाहे गर्मी का मौसम हो या सर्दी (ठंडी) का।
लेकिन सूरज में तग़य्युर (तब्दीली, बदलाव, परिवर्तन) के बाद असर का मकरूह समय शुरू हो जाता है।
मगरिब की नमाज़ का वक्त
मगरिब की नमाज़ का वक्त सूरज के डुबने से शुरू होता है।
और उस समय तक रहता है जब तक कि शफक़ (सूर्यास्त के बाद पश्चिम की लाली) समाप्त न हो जाये।
मतलब यह है कि असर के वक्त ख़त्म होते ही मगरिब का समय शुरू हो जाता है और शफक़ (पश्चिम की लाली) ख़त्म होने तक समय बाकी रहता है।
मगरिब की नमाज़ का मुस्तहब वक्त
मगरिब की नमाज़ अव्वल वक्त (शुरू समय) में पढ़ना मुस्तहब है, बेग़ैर किसी उज़्र (बिना किसी कारण) के मगरिब की नमाज़ देर से पढ़ना मकरूह है।
इशा की नमाज़ का वक्त
ईशा की नमाज़ का इब्तिदाई (आरंभिक) समय सफ़ेद रोशनी के गायब (लुप्त) होने से शुरू होकर सुबह सादिक तक रहता है।
ईशा की नमाज़ का मुस्तहब वक्त
ईशा की नमाज़ को रात के तिहाई हिस्से (तीसरे हिस्से) के पहले तक देर करके पढ़ना मुस्तहब है।
(जब कोई अन्य समस्या न हो, उदाहरण के लिए, जमाअत में लोग कम होने का डर न हो)
और आधी रात तक इशा की नमाज़ अदा करना जायज़ है, मकरूह नहीं है।
और आधी रात से सुबह सादिक तक बगैर किसी उज़्र (बिना किसी कारण) के नमाज़ पढ़ना मकरूह है।
(मुस्लिम शरीफ़: 612)
वित्र की नमाज़ का वक्त
वित्र की नमाज़ का वक्त इशा के बाद से शुरू होता है।
और सुबह सादिक होने तक बाकी रहता है।
वित्र की नमाज़ का मुस्तहब वक्त
और जिसे रात में जागने का भरोसा न हो, उसके लिए रात में सोने से पहले वित्र पढ़ना मुस्तहब है।
और जो रात में उठकर वित्र पढ़ सकता है वह नींद से जाग कर वित्र पढ़े।
इशराक की नमाज़ का वक्त
सूरज उगने के तक़रीबन (लगभग) 15-20 मिनट (मकरूह समय गुज़र जाने) बाद इशराक की नमाज़ का वक्त शुरू होता है।
चाश्त की नमाज़ का वक्त
चाश्त का समय सूर्योदय (सूरज निकलने) से ज़वाल तक बाकी रहता है;
लेकिन बेहतर यह है कि दिन का एक चौथाई हिस्सा गुज़रने के बाद चाश्त की नमाज़ पढ़ी जाए।
ज़वाल उस समय को कहते हैं जब ज़ुहर का वक्त शुरू होता है।
ज़वाल का वक्त शुरू होने पर नमाज़ पढ़ना मना भी नहीं है और मकरूह भी नहीं है, ज़वाल के वक्त निसंदेह नमाज़ अदा कर सकते हैं।
दूसरी तरफ़ एक ओर वक्त है जिसे “इस्तिवा-ए-शम्श” कहा जाता है।
“इस्तिवा” यह वह समय है जब दोपहर के वक्त सूरज एक दम से ऊपर रहता है।
इस समय (इस्तिवा के समय) नमाज़ अदा करना मकरूह-ए-तहरीमी) है, यानी नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है।
इस्तिवा के कुछ मिनट बाद ज़वाल का वक्त शुरू हो जाता है, और उस समय नमाज़ अदा कर सकते हैं।
इसका सही पता लगाना बहुत ही मुश्किल है, इसलिए सावधानी बरतते हुए इस्तिवा से पहले 5 मिनट और उसके बाद 5 मिनट नमाज़ नहीं पढ़ना चाहिए।
यानी कुल 10 मिनट बाद नमाज़ अदा करनी चाहिए।
इस्तिवा पहचानने का तरीका
साया (छाया) जिस जगह पर पहुंच कर कम होना बंद हो जाए, यही “इस्तिवा-ए-शम्श” का वक्त है।
इस समय नमाज़ पढ़ना मकरूह-ए-तहरीमी (नाजायज़) है।
फिर जब दूसरी तरफ़ साया (परछाइयाँ) बढ़ने लगे तो दूसरी तरफ़ बढ़ते हुए इसी साये का नाम ज़वाल-ए-शम्स है।
और जब ज़वाल शुरू हो जाए तो नमाज़ पढ़ना जायज़ हो जाता है।
लोगों में यह ग़लत मशहूर हो गया है कि ज़वाल के वक्त नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है, यह बात ग़लत है।
असल में “इस्तिवा” के समय नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है।
लोग ज़वाल बोलकर “इस्तिवा” मुराद लेते हैं।
ईद की नमाज़ का मुस्तहब वक्त
दोनों ईद (ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा) की नमाज़ का वक्त सूर्योदय (सूरज निकलने) के लगभग 20 मिनट बाद शुरू होता है और “इस्तिवा” (दोपहर) तक बाकी रहता है।
अस्सलामु अलैकुम।
प्यारे पाठको!
मेरा नाम मोहम्मद नजामुल हक है, मैं एक इस्लामी मदरसे का शिक्षक हूं।
मैं मदरसा शिक्षा के साथ-साथ ऑनलाइन इस्लामिक लेख भी लिखता हूं, ताकि लोगों को सही ज्ञान मिल सके।
आप हमारे साथ जुड़े रहें और सही जानकारी से लाभान्वित हों। यदि आपके पास कोई प्रश्न है या आप हमारी किसी गलती के बारे में सूचित करना चाहते हैं, तो आप हमसे संपर्क कर सकते हैं, जज़ाकुमुल्लाहु खैरन।