निकाह भी बहुत बड़ी इबादत है
Nikaah bhi bahut badi Ibadat hai
-:निकाह की अहमियत और फज़ीलत:-
(भाग: 5)
फ़िक़्हे-हनफ़ी (हनफ़ी न्यायशास्त्र) की एक अहम और महत्वपूर्ण किताब “अद-दुर्रूल-मुख्तार” में लिखा है कि:
“सिर्फ़ दो इबादतें ऐसी हैं के पैगंबर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से लेकर क़यामत तक समान रूप से चला आ रहा है,
- उनमें से एक “ईमान” है।
- और दूसरा “निकाह “ (विवाह) है।
और यह दोनों इबादतें जन्नत में भी जारी रहेंगे।
विवाह सारे रसूलों (अलैहिमुस सलाम) की विशेष सुन्नतों में गिना जाता है।
(मजमा-उज़-ज़वाइद-व-मनबा-इल-फ़वाइद: 7318)
क्योंकि नमाज़, रोज़ा और हज्ज आदि के वक्त (समय) तो मिनटों, घंटों और दिनों में ही सीमित हैं, लेकिन अगर शादी इबादत और सुन्नत की नियत से की जाए तो वह सिलसिला कई सालों तक बिना रुके चलती रहती है।
उदाहरण के तौर पर, अगर आपका विवाह 20 वर्ष की आयु में हुआ, और आप 80 वर्ष तक ज़िंदा रहे, तो लगातार 60 वर्षों तक निकाह की इबादत में मशगूल रहेंगे और शादी का सवाब (नेकी) पाते रहेंगे।
इसलिए विवाह को हमेशा सबसे अहम और महत्वपूर्ण इबादत के रूप में अंजाम देना चाहिए, और इसे केवल दुनियावी और पारिवारिक रस्म नहीं समझना चाहिए।
बल्कि निकाह को एक अहम और बड़ी इबादत समझकर अंजाम देना चाहिए।
ज़्यादातर लोग यही समझते हैं कि निकाह कोई इस्लामी चीज़ नहीं है, यह सिर्फ़ दुनियावी चीज़ है।
लेकिन ऐसा समझना सरासर ग़लत और इस्लाम के बारे में नासमझ होने की अलामत है।
अल्लाह हमें सही समझने की तौफीक अता फरमाए, आमीन।
-:और पढ़ें:-
वह कौन सी इबादत है जो आदम (अ.स) के ज़माने से लेकर क़यामत तक बाकी रहेगी?
फ़िक़्हे-हनफ़ी (हनफ़ी न्यायशास्त्र) की एक अहम और महत्वपूर्ण किताब, दुर्रुल-मुख्तार में लिखा है कि:-
“सिर्फ़ दो इबादतें ऐसी हैं के पैगंबर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से लेकर क़यामत तक समान रूप से चला आ रहा है,,
उनमें से एक “ईमान” है।
और दूसरा निकाह (विवाह) है।
और यह दोनों इबादतें जन्नत में भी जारी रहेंगी।
अस्सलामु अलैकुम।
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मेरा नाम मोहम्मद नजामुल हक है, मैं एक इस्लामी मदरसे का शिक्षक हूं।
मैं मदरसा शिक्षा के साथ-साथ ऑनलाइन इस्लामिक लेख भी लिखता हूं, ताकि लोगों को सही ज्ञान मिल सके।
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